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Wednesday, January 23, 2013

yaadon ka trunk...


ख़ूबसूरती उस लम्हे की क्या बयाँ करूँ...
 
जो ख़ुद ही अनायास खींच ले जाती हैं उन भूली यादों की ओर 
 
जिन्हें एक बड़े से लोहे के ट्रंक में क़ैद कर के रखा है...
 
एक मोटा सा ताला भी जड़ दिया है...
 
कहीं अचानक से वही यादें ना आ धमकें फिर आँखों के सामने 
 
उस ट्रंक में आज जर लगता दिखता है...
 
जानती हूँ उसे अब खाली कर, बदल डालने का वक़्त आ गया है...
 
जाने क्यूँ हिम्मत ही नहीं पड़ती 
 
बस अनजाने ही उस पर एक एक करके कुछ और सामान धरती जाती हूँ...
 
कहीं अचानक से वही यादें ना आ धमकें फिर आँखों के सामने...
 

 

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