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Saturday, January 19, 2013

intezaar...


ख़्वाबों ख़यालों की एक दुनिया वो भी थी...
जहाँ तुम्हारी टोह ले रही हूँ 
आज भी... 
 
जब कोहरे की एक धुंधली सी परत के उस ओर 
एक उम्मीद सी दिख जाती थी...
ख़ुशबू उस पसीने की 
जानी पहचानी सी... 
परछाई उस किसी की 
जिसे मानो बस अभी अभी छुआ था... 
वही कलम घिसने की सी आहट 
कुछ ढाढस बंधा जाती है... 
 
आज भी ...

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