Search This Blog

Friday, April 5, 2013

Ik Ajab Si Pashopesh Hai...

ऊँचा करके सर आसमान को ताकते हुए…नीले वसी उस अम्बर की आँखों में आँखें डाले निकल पड़े हैं इक तूफाँ दिल में लिये…

पर उस लम्हे का क्या?

इक लम्हा जो रुक गया वहीँ, उसी की याद का पोटला कंधे पे लादे इसी इंतज़ार में हैं की लम्हा गुज़रे ज़रा, कुछ आगे की ओर क़दम हम भी ले लें

अजब सी पशोपेश में पड़ जाता है जब कभी उस लम्हे से निकल फिर उस आसमां पर नज़र पड़ जाती है कभी, यूँ ही बस गलती से...

8 comments:

  1. Can you add references to the world around you (like moving traffic, crowds or flora near you) so people can link their reality with this thought

    ReplyDelete
  2. कई दफा ऐसे पशोपेश का सामना करना पड़ता है ... और वो लम्हा ... आह!

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुछ यादगार, कुछ मीठे, कुछ खट्टे, कुछ कड़वे और कुछ कसैले...

      Delete

  3. गहन अनुभूतियों को सहजता से
    व्यक्त किया है आपने अपनी रचना में
    सार्थक रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग jyoti-khare.blogspotin
    में भी सम्मलित हों ख़ुशी होगी

    ReplyDelete
  4. aapke sujhaav ke liye shukriya...

    ReplyDelete
  5. इंसान जब निराश हो जाता है ,कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है, तो वह ईश्वर (आसमां) की और देखने लगता है -इन्सान की नियति है ,
    LATEST POSTसपना और तुम

    ReplyDelete
    Replies
    1. ya shaayad aasmaan ko ghoor kar ishwar se kuchh kehna sunna chaahta hai...

      Delete