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Sunday, August 2, 2015

एक जोड़ा पंखों का

एक जोड़ा जो पंखों का मुझे भी दिया होता...
जब मन होता उड़ जाती...
उड़ान मन की भर पाती...
अपने मन को टोह पाती...
आधा सा जो मन लेके जीती हूँ ...
बाकी का आधा भी ढूंढ पाती..
मन मेरा आधा ही है मेरे पास...
आधा मन तो मायके में छोड़ आई हूँ...
घिरते हैं जब उदासी के बादल...
अम्माँ बहोत याद आती हैं...
छोटी सी भी हो जो चोट...
बाबा का मलहम आता है याद...

अपनी उदासी खुद ही मिटाती हूँ...
अपनी चोट भी खुद ही सहलाती हूँ...
बस सोचा करती हूँ...
एक जोड़ा पंखों का मेरा भी होता...
उड़ जाती मन के साथ...
उड़ जाती मन के पास...

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