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Thursday, July 29, 2010

बारिश में क्या है ऐसा जो आज भी वो मुझे उतना ही खींचती है अपनी ओर जितना की उस भूले हुए बचपन में रिझाती बुलाती थी.... आज भी गिरती बूंदों को देख ऐसा लगता है की बस दौड़ कर जाऊं और उन बूंदों को भर लूँ अपनी मुट्ठियों में, आग़ोश में और महसूस कर पाऊं अपने को भीगते हुए सिर्फ हाथ पैर ही नहीं, मेरा मन भी इस बारिश में सराबोर हो जाए.... एक बादामी ठंडक को महसूस करना चाहती हू... आज दोपहर की बारिश कुछ ऐसी ही थी मेरे लिए जिसने मुझे तोहफे में एक मखमली सी याद दी है.... संजो के रखने के लिए...

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