यूँ ही कभी… वक़्त की ऊँगली थामे… चलते चले जा रहे हैं…
फ़िक्र कुछ कम ही है…
उम्मीदों की टोकरी सर पर रखे… इक छोटी सी पोटली यादों की, बगल में दबाये…
सब से छुपाये, बस मस्त मलंग से चले जा रहे हैं…
कल क्या होगा… उस पार कौन है बैठा…
पीछे कौन है छूटा… कौन है जो ले रहा टोह मेरी… अब कोई मायने नहीं हैं इसके…
बस चलते चले जा रहे हैं… बस चलते चले जा रहे हैं…
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