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Friday, October 25, 2013

Khuda bhi Bhagwaan bhi...

राम और रहीम की इस आपा धापी, कश्म कश में मज़हब और धर्म ही तो है जो शिक़स्त खा  लम्हा हर पल… लड़ते लड़ते भूल गए हैं कि आखिर लड़ाई का मक़सद ही क्या था…

बेमतलब हो चला है ख़ुदा भी और भगवान् भी… 
सियासती शतरंज का बस एक अदना प्यादा सा… ख़ुदग़र्ज़ी और आपसी रंजिशों की बिसात पर धीमी सी, सहमी हुई, ग़ैर मतलब, बेमानी सी चाल चलता कुछ अकेला पड़ गया है वो… 

जाने कब अक्ल आएगी बन्दे को कि क़ाफ़िर और को कहने चला… अरे नाचीज़ खुद अपने गिरेबान में भी तो झाँका होता…


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