मुझमें थोड़ा मैं भी रहने दो... चलते - चलते ग़र कभी गिर जाऊं तो ख़ुद ही उठ लेने दो... कुछ मेरी भी ग़लतियाँ ख़ुद मुझे ही कर लेने दो... उन ग़लतियों को सुधारने की इक कोशिश भी कर लेने दो...
दम है मुझमें इतना की ख़ुद संभल सकती हूँ मैं भी... हर तेरे क़दम से क़दम मिला चल सकती हूँ मैं भी...
तेरी इजाज़त की मोहताज नहीं अब, ख़ुद अपनी मनमानी कर सकती हूँ मैं भी...
ये शुरुआत है अब मेरी उड़ान की... बनाने लगी हूँ अब अपनी पहचान भी... अपने "मैं" को सींच रही हूँ, ख़ुश होती हूँ देख इसकी मुस्कान भी...
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