हाँ तुम मेरी
आदत हो...
पर हर आदत
बुरी तो नहीं हुआ करती!
मेरी सुबह होती
ही है तुम्हारे
आने की आस से...
उठने का सबब
हो मकसद हो अब तुम...
हाँ मेरी आदत
हो तुम...
जब तवा चढ़ाती
हूँ gas पर,
तुम्हारी भी तीन
रोटियाँ साथ गिनती
हूँ,
चाहे तुम घर
पर खाओ के न ही
खाओ...
हाँ सच मेरी
आदत हो तुम...
जब घड़ी के
काँटे शाम को छह बजाते
हैं,
अनायास कदम मेरे
चल पड़ते हैं
तुम्हें जगाने...
भले वो कमरा
खाली ही क्यों
न हो...
हाँ मेरी आदत
ही तो हो तुम...
रात को सोने
जाती हूँ जब,
बिस्तर पर जगह
तुम्हारी छोड़ कर
सोती हूँ,
भले रात भर
आओ के न आओ तुम,
हाँ मेरी आदत
हो गए हो तुम...
सुबह नहाकर तैयार
जब होती हूँ,
जबरन इर्द गिर्द मंडराती
हूँ,
इत्र की खुशबू, या क़दमों
की आहट से भले नींद न टूटे तुम्हारी...
पर तुम मेरी आदत हो...
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