आँकी बाँकी पटरियों पर लहराती ट्रेन कि छुक छुक... अपनी पोटली में यादों का टोकरा संजोये बैठी है... गर्मी कि छुट्टियों में कोलकाता का सफ़र...कुछ एक महीने पहले से प्लानिंग और कुछ मुंगेरी लाल के से मीठे मीठे ख़्वाबों ख़यालों में डूबे पल...शादी के बाद नयी नयी दुल्हन बन मेहँदी से रंगे हाथ और शाखा पोला, बिछिया पहने, ससुराल का पहला सफ़र, कुछ excited, कुछ nervous... और अभी एकाध साल पहले कॉलेज के बच्चों संग मुम्बई की कुछ अलग सी मस्ती भरी इक यात्रा... तरह तरह के लोग... हर किसी कि अपनी ही वजह इस सफ़र पर निकल पड़ने कि... ये पोटली कुछ बढ़ती घटती रहती है... कुछ धुंधलाती यादें सरक कर कहीं ग़ुम हो जाती हैं कभी... और कुछ नयी सी यादें जुड़ती चली जाती हैं...
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