कल जब शाम को सत्यमेव जयते का repeat telecast देख रही थी तो बीच में एक commercial break में एक विज्ञापन आया, महाभारत का. यूँ तो जब भी महाभारत या रामायण जैसे धार्मिक धारावाहिकों का उल्लेख होता है तो अनायास ही एक अपराध बोध कि भावना घेर लिया करती है मुझे, कि मैंने कभी इन्हें पढ़ा नहीं. पर उस दिन द्रौपदी के चीरहरण का दृश्य दिखाया गया, और तब कहीं समझ आया कि क्यूँ मेरी कभी इच्छा नहीं हुई कि मैं इन्हें पढ़ूँ. लोग कहते हैं कि हमारे इन धार्मिक ग्रंथों में बहोत कुछ पढ़ने सीखने को मिलता है. पर महाभारत कि द्रौपदी और रामायण कि सीता का जो हश्र हुआ था, उसके बारे में सुनती आयी हूँ, शायद इसीलिए कभी मन नहीं हुआ होगा. द्रौपदी को पहले तो एक स्वयंवर में ब्याह दिया गया, जाने बिना, पहचाने बिना एक पति के संग वो चल भी दीं. फिर एक भिक्षा में मिली वस्तु के सामान पाँच भाइयों ने उनको आपस में बाँट भी लिया. फिर एक सांझी जायदाद या संपत्ति कि तरह उन्हें जुए में दांव पर लगा दिया. अब इससे बड़ा Objectification of women का क्या उदहारण दूँ?
हमारे समाज में हमेशा अकेली औरतों को उलाहना दिया जाता है या सुझाव दिया जाता है कि अकेली रहोगी तो तुम्हारी सुरक्षा कौन करेगा, साथ में किसी मर्द का होना ज़रूरी है. द्रौपदी के तो पाँच पति थे, वे सब मिलकर भी उनके सम्मान कि रक्षा नहीं कर पाए. भरी सभा में धर्म और सत्य के ठेकेदारों के बीच निर्वस्त्र किया गया, अपमानित किया गया, और ये सभी मूक दर्शक बन, बस देखते रहे. इतना सब होने पर भी द्रौपदी उन्ही पाँच पतियों के संग रहीं और उनके साथ वनवास, अज्ञातवास काटा.
यही सब तो हम और हमारे counterparts सीखते आये हैं. या तो आप इनके रक्षक बनें या भक्षक. इनके दोस्त, सलाहकार या जीवन साथी नहीं, इनके owner हैं आप, ये responsibility हैं आपकी. रामायण में भी सीता को स्वयंवर के द्वारा पति को चुनना था, चुना, ब्याह के ससुराल आईं, और फिर वनवास. रावण को गुस्सा था लक्ष्मण पर और बदला लिया सीता का अपहरण कर. सीता क्या कोई तिजोरी खज़ाना थीं? फिर रावण वध कर सीता को लौटा लाये राम, और क्या दिया? अग्निपरीक्षा... क्यूँ भाई सीताजी कि क्या ग़लती थी कि वो परीक्षा देंगी? यहाँ से हमने सीखा victim bashing का अध्याय.
अब यही सब सीख कर अगर हम बड़े हुए हैं तो मैं ख़ास हैरान नहीं हूँ कि निर्भया या Suzette या उर्मिला जैसी कोई महिला रोज़ ऐसी ही किसी gang-rape जैसी वहशी घटना झेल जाती है, कोई जी जाती है कोई बलि चढ़ जाती है... किसे दोष दू और न्याय किस से माँगू?
हमारे समाज में हमेशा अकेली औरतों को उलाहना दिया जाता है या सुझाव दिया जाता है कि अकेली रहोगी तो तुम्हारी सुरक्षा कौन करेगा, साथ में किसी मर्द का होना ज़रूरी है. द्रौपदी के तो पाँच पति थे, वे सब मिलकर भी उनके सम्मान कि रक्षा नहीं कर पाए. भरी सभा में धर्म और सत्य के ठेकेदारों के बीच निर्वस्त्र किया गया, अपमानित किया गया, और ये सभी मूक दर्शक बन, बस देखते रहे. इतना सब होने पर भी द्रौपदी उन्ही पाँच पतियों के संग रहीं और उनके साथ वनवास, अज्ञातवास काटा.
यही सब तो हम और हमारे counterparts सीखते आये हैं. या तो आप इनके रक्षक बनें या भक्षक. इनके दोस्त, सलाहकार या जीवन साथी नहीं, इनके owner हैं आप, ये responsibility हैं आपकी. रामायण में भी सीता को स्वयंवर के द्वारा पति को चुनना था, चुना, ब्याह के ससुराल आईं, और फिर वनवास. रावण को गुस्सा था लक्ष्मण पर और बदला लिया सीता का अपहरण कर. सीता क्या कोई तिजोरी खज़ाना थीं? फिर रावण वध कर सीता को लौटा लाये राम, और क्या दिया? अग्निपरीक्षा... क्यूँ भाई सीताजी कि क्या ग़लती थी कि वो परीक्षा देंगी? यहाँ से हमने सीखा victim bashing का अध्याय.
अब यही सब सीख कर अगर हम बड़े हुए हैं तो मैं ख़ास हैरान नहीं हूँ कि निर्भया या Suzette या उर्मिला जैसी कोई महिला रोज़ ऐसी ही किसी gang-rape जैसी वहशी घटना झेल जाती है, कोई जी जाती है कोई बलि चढ़ जाती है... किसे दोष दू और न्याय किस से माँगू?