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Thursday, May 14, 2015

अब और नहीं...अब बस!

खोद रहे हैं, भेद रहे हैं...नोच रहे हैं खरोच रहे हैं...
सीने में उसके है जो खज़ाना... लालच में उसके, बस लगे हुए हैं
हल चलता था तो सोना उगता था खेतों में...
नींव खुदती थी तो छत भी ढलती थी सर पर अपने..
कब न जाने थोड़ा और, थोड़ा और करते करते 
पर्बत पठार सब चीर दिए...
कहीं हथौड़ा, कहीं कील और कहीं बड़ी बड़ी दैत्याकार मशीनें
इन सब ने उघाड़ कर रख दिया उस माँ को
क्यों कोई न चीखा उसके लिए?
क्यों कोई न बोला उसके लिए?
देश प्रगति पर है!
देश बढ़ रहा है!
गढ़ा खज़ाना उबार रहा है!
पर माँ बोली अब बस!
अब बस!
अब बस हुआ अब बहोत हुआ
Katrina से न समझे तुम जब
Tsunami से न समझे तुम जब
अब नेपाल के हाल से तुम क्या कुछ सीखोगे..
पर अब बस!
सब को अपनी गोद में पाला
सब तुम्हारी गलतियों पर खूब मैंने परदा डाला
पर अब और नहीं!
अब संघार से क्यों हो डरते?
अब विनाश से क्यों हो डरते?
अब उस विपदा से क्या कतराना?
सब तुमने ही लिखा भाग्य में...
सब तुमने ही रचा खेल ये...
पर अब बस!
अब मेरी है बारी आई...
पासा अब है मेरा, नियति की इस चौपड़ में...
अब बस!

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